प्रेरणाप्रद आध्यात्मिक दृष्टांत
एक राजा के पास राजा के गुरु आये । राजा ने बड़ा आदर सत्कार किया । एक बड़ी सर्वरा की थाली लेकर सुंदर रेशमी कपड़े और रेशमी जूता और धन थाली में डालकर गुरुदेव के सम्मुख रखा । तब गुरुदेव ने कहा राजन यह सामान किस के लिए है तब राजा ने कहा प्रभु यह आपके अर्पण हैं । तब गुरु ने मन ही मन सोचा हम संन्यासी हैं । हमारा इस सामान से क्या लेना-देना । चलो इस बदले राजा को कुछ विचार देना चाहिए ।
तब गुरु ने कहा राजन यह सुंदर कपड़े सुंदर दोशाला और सुंदर जूते पहन ले तो हम सन्यासी नहीं रहेंगे । फिर हम सन्यासी से सेठ बन जाएंगे । अगर तू प्रेम प्यार से देना ही चाहता है यह सामान । फिर तुझे चार घोड़े व वाग्गी का प्रबंध करना होगा । राजा ने कहा यह आज ही हो जाएगा । तब स्वामी ने कहा वाग्गी रखने के लिए एक सुंदर समान की जरूरत होगी । राजा ने कहा प्रभु वह भी हो जाएगा । तब स्वामी ने कहा राजा इतने बड़े महल में मैं अकेला कैसे रह सकूंगा फिर तुम्हें मेरी शादी करानी होगी और शादी के बाद बच्चे भी हो जाएंगे उनके लिए भी खर्चा पानी चाहिए और बच्चे बीमार हो जाएंगे तो डॉक्टर की दवाइया भी चाहिए राजा ने कहा वह भी हो जाएगा तब गुरुदेव ने कहा कल को कोई बच्चा मर जाता है तो रोएगा कौन । तब राजा ने कहा गुरुदेव रोना तो आपको ही पड़ेगा । तब गुरु ने कहा यह सामान पाकर मुझे कल रोना है तो मैं जैसा हूं वैसा ही ठीक हूं । राजा के विचार की आंख खुल गई कि सांसारिक पदार्थ सुख देने वाले नहीं मिल तो जाते हैं फिर उनको पाकर रोना पड़ता है ।
राजा गुरुदेव के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा । तब गुरुदेव कहने लगे राजन असलियत को समझ जो कुछ है वह कोटा सोना है । उसके ऊपर असल की पालिश हो रही हे । विचार रूपी बुद्धि से काम लें । सत्य असत्य की परख कर सत्य तू है असत्य संसार है । यह तेरी बुद्धि में कल्पना रूप में विराजमान है । कल्पना को कल्पना समझ यही सच्चा ज्ञान है । जब सर्वनाम रूप तुझ अधिष्ठान में कल्पना रूप से विराजमान है । तो डर किस बात का हे । और साथ में इस बात को समझ की कल्पित वस्तु अधिष्ठान का रुप होती है । अधिष्ठान से अलग नहीं हो सकती ।
ऐसे ही राजन 33 करोड़ देवी देवता लोक परलोक मुझ अधिष्ठान में कल्पित हैं । यह कल्पित मोत याम कल को जिव में सत्य मान कर उस से भयभीत हो रहा है । जैसे मिट्टी का शेर बच्चा सत्य समझकर डरता है । ऐसी कल्पित को कल्पित जानना और अधिष्ठान को अधिष्ठान रूप से अनुभव करना । यही सच्चा ज्ञान है और तू है । इस ख्याली रचना को सत्य मत मान । तुम में न जन्म है न मरण है । फिर जन्म मरण की चट्टानों से टकरा कर अपना सत्यानाश क्यों कर रहा है । जैसे कुम्हार मिट्टी के देवी-देवता बनाता है वह जानता है कि यह कल्पना है । फिर कुम्हार अपनी कल्पना से भयभीत कैसे होगा । उठ विचार के नेत्र खोलकर निर्भय अवस्था को प्राप्त कर । यही तेरा लक्ष्य है और यही सच्चाई तेरे अंतरात्मा का ज्ञान है ।
[…] […]
Wow, this article is pleasant, my younger sister is analyzing these kinds of things,
so I am going to convey her.